रविवार, 8 सितंबर 2013
एक पत्रकार की मुजफ्फरनगर दंगे में मौत
भाई राजेश वर्मा.. मुजफ्फरनगर के मेरे पत्रकार मित्र...जिनसे मैं कभी नहीं मिला.. एक ही बार बात हुई थी तो वो भी एक ही दिन में सिर्फ 4 या 5 बार...करीब दो महीना पहले ...एक अंग्रेजी चैनल के हमारे मित्र के भाई को मुजफ्फनगर में कुछ गुंड़ो ने बुरी तरह मार पीटकर लहुलुहान कर दिया था..और उनकी कार भी छीनकर भाग गए थे। तब मैने राजेश भाई को पहली बार फोन किया था..।इन्होने तत्काल पुलिस के आला अधिकार्रियों को फोन घुमाकर सारी जानकारी लेकर मुझे दी। साथ ही मुझे कहा कि अंग्रेजी चैनल के मित्र को कहिए कि मुझे फोन करें...कार..कार के कागजात और दूसरी जरूरी डिटेल के साथ। इस बीच राजेश भाई ने अस्पताल में पहले फोन कर और फिर खुद पहुंचकर ये सुनिश्चित किया कि दोस्त के भाई की यूपी के सरकारी अस्पताल में भी मरहमपट्टी सही तरीके से हो। इतनी ही देर में राजेश भाई सिपाही, एसएचओ, एसपी और डीआईजी तक को फोन घुमाकर अपराधियों को पकड़ने के लिए दबाव बना चुके थे। खैर अपराधी तो नहीं पकड़े गए..पर कार जरूर कुछ दिन बाद बरामद हो गई। मैं और मेरे अंग्रेजी चैनल के मित्र आज बेहद दुखी होने के साथ ऋणी भी हैं राजेश भाई के..जिनकी मदद के चलते एक शख्स की जान बची। मैं..मेरे मित्र और उनके भाई..तीनों ही राजेश भाई के लिए अनजान थे..बस ये पत्रकारिता की डोर ही थी जिसने बिना मुलाकात के ही हम तीनों को राजेश भाई के इतना करीब ला दिया कि शायद अब ये दर्दनाक घटना भी उनको हमसे कभी दूर ना कर सकेगी। कोशिश रहेगी कि अपने इस दिवंगत भाई के परिवार की जीवन में कुछ मदद कर सकूं और उनके परिवार वालों से मिल सकूं। भगवान आपकी आत्मा को शांति दें..और आपके परिवारवालों को ये दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
रविवार, 18 अगस्त 2013
सलाम !!!
‘छंटनी’ शब्द इतना डरावना भी हो सकता है ये अब समझ में आ रहा है। बात खुद पर जो आ गई है। पत्रकार का पेशा तो वैसे भी सबसे असुरक्षित पेशे में शुमार किया जाता है। लेकिन नौकरी से निकाले जाने का डर सबसे भयावह होता है। हो भी क्यो नहीं..बात अगर एक व्यक्ति की हो तो कोई दिक्कत नहीं होती..लेकिन यहां तो एक को नौकरी से निकाले जाने का मतलब है कि आपने पूरे परिवार की रोजी रोटी छीन ली।एक अकेला तो अपना पेट जैसे तैसे भर लेगा..पर परिवार का क्या..बच्चों के दूध से लेकर स्कूल फीस का जुगाड़ कैसे होगा।
कुछ साल पहले स्पाइस जेट या ऐसे ही कई कंपनियों में जब छंटनी की तलवार लटक रही थी तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया था। मैने भी हाथों में चैनल का गनमाईक थामे, कैमरामैन के साथ कितनी ही बार सुबह-सुबह पालम एयरपोर्ट से लेकर सफदरजंग एयरपोर्ट के चक्कर लगाए थे। और रात के कितने ही घंटे सफदरजंग एयरपोर्ट के पॉयलट क्लब में पायलट-सरकार और मैनेजमेंट के बीच लगातार चल रही बैठकों के खत्म होने के इंतजार में बिताए थे।.. कितनी ही बाईट ली थी.. और कितने ही फोन-इन, लाईव दिए थे और पीटीसी भी की थी। तब यह हमारा काम था और हमको इस बहाने टीवी पर दिखने का मौका भी मिल रहा था। यानि ये छंटनी हमको रोज काम करने का मौका या रोजी-रोटी चलते रहने की वजह दे रही थी।
जब हमारे सहयोगी बिजनेस चैनल से रिपोर्टर, कैमरामैन, प्रोड्यूसर निकाले गए तो भी हमने इस और ज्यादा ध्यान नहीं दिया। या यूं कहे कि हम पर कोई फर्क नहीं पड़ा..हमने सोचने की जहमत तक नहीं उठाई सिवाय कभी कुछेक बार जिक्र करने के...
सोमवार, 25 जून 2012
BJP और JD(U)....कितने दिन का साथ?

बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों में आई खटास कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है। अब बारी एनडीए के संयोजक और जेडीयू नेता शरद यादव की थी। शरद यादव ने बीजेपी नेता और गुजरात बीजेपी के प्रभारी बलवीर पुंज के उस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है जिसमें गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम पद का मजबूत उम्मीदवार बताया था। पर बीजेपी को लगता है कि एनडीए में सब कुछ ठीक है।
बुधवार, 2 नवंबर 2011
मंगलवार, 1 नवंबर 2011
तेरे जाने से बदल जाऊंगा मैं...
तेरे जाने से
खुद को तन्हा पाऊंगा मैं
तुझे याद करुंगा तूझे भूल जाऊंगा मैं
तेरे जाने से बदल जाऊंगा मैं
अब मैं किसे याद करुंगा
किसके लिए उस खुदा से फरियाद करुंगा
अब कौन मेरी गुस्ताखियों के बाद भी मुझे गले लगाएगा
कौन मेरी गलतियों का एहसास कराएगा
पर अब शायद मुझे बदलना होगा
हां...तेरे जाने से बदल जाऊंगा मैं
रविवार, 23 अक्तूबर 2011
वॉल स्ट्रीट से दिल्ली तक !
‘वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करो’ के नारे वाला आंदोलन पूंजीवाद की पूजा करने वाले विकसित देशों के लिए खतरे की घंटी है। चंद बेराजगार और हताश लोगों द्वारा शुरु हुआ ये आंदोलन पूंजीवाद को सभी समस्याओं की रामवाण दवा मानने वाले हुक्मरानों को बुरे सपने दे रहा है। 23 सितंबर को न्यूयार्क से शुरू हुआ यह आंदोलन आज 80 देशों के 950 से भी ज्यादा शहरों में फैल चुका है। हालांकि भारत जैसे विकासशील देश अभी तक इस आंदोलन से बचे है लेकिन इस आंदोलन की लपटें इन देशों के दरवाजों पर भी जल्द दस्तक दे सकती हैं।
गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011
सोनिया की बीमारी के साइड-इफेक्ट्स
सोनिया गांधी अपनी रहस्यमय बीमारी का अमेरिका में सफल ऑपरेशन करा कर दो महीने पहले दिल्ली लौट आईं है। कांग्रेस का कहना है कि वे पूरी सक्रियता से पार्टी के कामकाज को देख रही हैं। लेकिन इस बीमारी के नाम को कांग्रेसी टॉप सीक्रेट श्रेणी में रखे हुए है। लेकिन ये बताया जा रहा है कि कांग्रेस मुखिया इस रहस्यमय बीमारी का असर उनके कामकाज पर पड़ सकता है। ऐसे में सोनिया गांधी के राजनीतिक करियर को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। कांग्रेस के अंदरुनी हलकों में इस बात की चर्चा है कि सोनिया गांधी 2014 में रायबरेली से लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेगी। इस चर्चा के साथ ये भी जोड़ा जा रहा है कि सोनिया गांधी सेहत के मद्देनजर अपनी बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा को रायबरेली से चुनाव मैदान में उतार सकती हैं।